सोमवार, 22 जुलाई 2013

पूनम तेरी कंचन काया ,रूप की देवी धरा की अप्सरा ,
कजरारी नयनो से बहे प्रीत की धारा,पूनम तेरी कंचन काया ,
निशा के अंधेरे में तुम फुल सी खिली हो,
वीरानी तमस में तुम सुंदर सजी हो ,
माथे चाँद सी बिंदी मन भाया,
होठो से बहे अमृत की धारा ,
मुखडा मानो सुनी देहरी पर मुस्कानों का दीप,
पूनम तेरी कंचन काया ,रूप की देवी धरा की अप्सरा ,

यह केवल सिर्फ मेरे प्रिय मित्र के लिए है उनका नाम मै यहाँ पर नहीं लूँगा ,यह पूनम नाम केवल काल्पनिक है,मेरे उस मित्र से मै बहुत प्रभावित हुआ हु ,और मई चाहता हु की उन्ही की तरह मेरी जीवन संगिनी मिले ,मुझे नहीं मालूम की मेरा मित्र मेरे बारे में क्या सोचता है पर मई उनके विचारो से बहुत ही प्रभावित हु, उनसे मुझे मिले अभी ज्यादा दिन तो नहीं हुए है पर मै उनसे बहुत ज्यादा प्रभावित हुआ हु ,ये उन्ही के लिए लिख रहा हु वो जब भी पढ़े तो समझ जाये ,उनका फ़ोन आ जाये तो मेरी सारी तपश्या सफल हो जाएगी

रंजीत मिश्रा
भिलाई

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