फूक कर रखता हु कदम ,
फिर भी कदम संभले तो मै क्या करू ,
कोई नहीं चाहता अपनी बेबसी पर रोना,
आंख भर आये तो मै क्या करू ,
खामोश जीता रहा तनहा रातो में ,
सुबह फिर भी न आये तो क्या करू,
कोई दवा न मिले इश्क के दर्द की ,
दवा ही दर्द बन जाये , तो मै क्या करू ,
रंजीत मिश्रा
फिर भी कदम संभले तो मै क्या करू ,
कोई नहीं चाहता अपनी बेबसी पर रोना,
आंख भर आये तो मै क्या करू ,
खामोश जीता रहा तनहा रातो में ,
सुबह फिर भी न आये तो क्या करू,
कोई दवा न मिले इश्क के दर्द की ,
दवा ही दर्द बन जाये , तो मै क्या करू ,
रंजीत मिश्रा
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