गुरुवार, 5 जुलाई 2012


सुबह होती है,शाम होती है
जिंदगी तमाम होती है.
बहुत लोग निराशा में ही जीवन बिता देते हैं उनके लिये निराशा ही जीवन है.आप लाख कहते रहो पर कि उनका जीना जीना नहीं है पर अगर वे कहते हैं हमारे लिये निराशा ही जीवन है तो आप अपनी आशा का कितना रंदा चलाओगे उन पर ?तो महाराज पहले तो मेरा यह बयान नोट किया जाये कि आशा ही जीवन है यह बात पूरी तरह सच नहीं है.जीवन में आशा के अलावा भी बहुत कुछ होता है.
यह तो हुआ मंगलाचरण.अब यह बतियाया जाये कि आशा है क्या ? हम बहुत पहले कह चुके हैं कि आशा हमारी पत्नी का नाम नहीं है. पर उस समय हम यह बताना छोड़ दिये थे कि आशा कौन है -किसका नाम है?तो अब वह बताने के प्रयास किया जाये.
आशा स्त्रीलिंग है.खूबसूरत है.आकर्षक है.बिना किसी उम्र-लिंग के भेदभाव के सबकी चहेती है.जीवन को अगर संसद कहा जाये तो आशा मंत्रिमंडल है.जीवन अगर कोई प्राइवेट लिमिटेड कंपनी है तो आशा वह शेयरधारक है जिसके पास इस कंपनी के सबसे ज्यादा शेयर हैं.जीवन अगर कोई गाड़ी है तो आशा उसकी ड्राईवर.जीवन अगर कोई इंजन है तो आशा उसका ईंधन.
आशा का स्थान बहुत जरूरी है जीवन में.बहुत कुछ होता है जीवन में जब मनचाहा नहीं होता.निराशा होती है.ऐसे समय में आशा एक संजीवनी होती है जिससे जीवन फिर उठ खड़ा होता है.आशा वह बतासा है जो जीवन के मुंह में घुल कर कड़वाहट दूर करता है.मिठाई में केवड़े की सुगन्ध की तरह है आशा की महक .